पारिस्थितिक तंत्र क्या है ( Ecosystem In Hindi )
-दोस्तों पारिस्थितिकी और परिस्थितिक तंत्र दोनों एक जैसे लगते हैं लेकिन इन दोनों की परिभाषा में अंतर है आइए हम परिस्थितिकी क्या है और पारिस्थितिक तंत्र क्या है इन दोनों शब्दों की विवेचना करते हैं और परिभाषा से इनके बारे में विस्तारपूर्वक जानते हैं
पारिस्थितिक तंत्र क्या है
पारिस्थितिक तंत्र शब्द का उपयोग सर्वप्रथम A.G. TANSLE द्वारा 1935 में किया गया इनके अनुसार प्रकृति के जीवमंडल मे पाए जाने वाले सभी प्रकार के जैविक और अजैविक घटकों का सम्मिलित रूप से पारस्परिक क्रिया को पारिस्थितिक तंत्र कहा जाता है
पारिस्थितिकी की परिभाषा
पारिस्थितिकी विज्ञान की वह शाखा है जिसके अंतर्गत समस्त जीवो और उनका भौतिक पर्यावरण के साथ उनके अतः संबंधों का अध्ययन किया जाता है पारिस्थितिकी कहलाता है
पारिस्थितिकी को इंग्लिश में oncology कहा जाता है इस शब्द का सर्वप्रथम उपयोग एर्नस्ट हेकेल द्वारा 1869 में किया गया आगे जाकर oncology को ecology कहा जाने लगा
परिस्थितिक तंत्र की विशेषता
- पारिस्थितिक तंत्र में सभी प्रकार की प्राकृतिक संसाधन सम्मिलित होते हैं
- परिस्थितिकी तंत्र में उत्पन्न होने वाले उत्पादकता इसमें प्रवाहित होने वाली ऊर्जा की मात्रा पर निर्भर करते हैं
- पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा का निरंतर आना और ऊर्जा का बाहर जाना लगा रहता है
परिस्थितिक तंत्र के घटक
पारिस्थितिक तंत्र में पाए जाने वाले घटकों को दो भागों में बांटा गया है जो जैविक और अजैविक घटक होते हैं
अजैविक घटक
को तीन भागों में बांटा गया है जो है भौतिक ,अकार्बनिक और कार्बनिक
- भौतिक कारक में तापमान आद्रता प्रकाश स्थलाकृति सम्मिलित होती है
- अकार्बनिक घटक में अकार्बनिक घटक मैं जल वायु मंडल गैस मिट्टी खनिज और चट्टान शामिल होते हैं
- कार्बनिक घटक में प्रोटीन कार्बोहाइड्रेट और वसा सम्मिलित होता है
जैविक घटक
जैविक घटक में सभी प्रकार के पेड़ पौधे और जीव जंतु शामिल होते हैं इसमें शामिल हैं उत्पादक उपभोक्ता और अपघटक
आइए हम जैविक घटक घटक में पाए जाने वाले सभी प्रकार के घटकों के बारे में विस्तार से जानते हैं
उत्पादक
-जैविक घटक में उत्पादक अपना महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं इसमें अधिकांश पेड़ पौधे कुछ जीवाणु और कुछ सैवाल शामिल होते हैं यह सभी सूर्य के प्रकाश की
सहायता से अपने लिए भोजन बनाते हैं और इनका बनाया हुआ भोजन को उपभोक्ता ग्रहण करते है
उपभोक्ता
यह पेड़ पौधों से प्राप्त उत्पादन का उपभोग करते हैं इसलिए इन्हें उपभोक्ता कहा जाता है उपभोक्ता पेड़ पौधों से प्राप्त उनके पत्ते और फल फूल पर निर्भर रहते हैं
देखा जाए तो पृथ्वी पर स्थित सभी प्रकार के जीव उत्पादक पर निर्भर होते हैं और बाकि सभी जीव उपभोक्ता कहलाते हैं क्योंकि अगर आप सोचते हो कि मांसाहारी या सर्वाहारी जीव उपभोक्ता नहीं हो सकता तब यहां पर आपकी सोच गलत हो जाती है
क्योंकि मांसाहारी जो होता है वह तृतीयक उपभोक्ता होता है और यह अपना भोजन हमेशा प्राथमिक और द्वितीयक उपभोक्ता को बनाते हैं और यह प्राथमिक और द्वितीयक उपभोक्ता भोजन के लिए उत्पादक पर ही निर्भर रहते हैं
उपभोक्ता को तीन भागों में बांटा गया है
प्राथमिक उपभोक्ता , द्वितीयक उपभोक्ता ,तृतीयक उपभोक्ता
प्राथमिक उपभोक्ता-वे होते है जो सीधे उत्पादक पर निर्भर होता है
द्वितीयक उपभोक्ता-वे होते हैं जो भोजन के लिए प्राथमिक उपभोक्ता और उत्पादक पर निर्भर होते हैं
तृतीयक उपभोक्ता– वे होते हैं जो पूर्णता मांसाहारी होते हैं और जो अपना भोजन प्राथमिक उपभोक्ता और द्वितीयक उपभोक्ता को बनाते हैं
अपघटक – Decomposer in हिंदी
अपघटक को मृतोपजीवी भी कहा जाता है इसमें अधिकांश बैक्टीरिया और कवक आते हैं जो अपने भोजन और पोषण के लिए मृत जीव जंतु पेड़ पौधे पर निर्भर होते हैं इन्हे हम कार्बनिक पदार्थ कह सकते हैं इस प्रकार अपघटक सभी प्रकार के कार्बनिक पदार्थों को उनके मूल तत्वों में उन्हें तोड़ देते हैं और इन्हें अजैविक घटकों में मिला देते हैं
पारिस्थितिक पिरैमिड ( Ecological pyramid )
परिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा के प्रवाह के अनुसार से उर्जा तंत्र को पिरामिड के रूप में दिखाया गया है पिरामिड ऊपरी सिरा में मांसाहारी को रखा गया है क्योंकि उनकी संख्या कम होती है और सभी साकाहारी सर्वाहारी का भक्षण करते हैं
जबकि पिरामिड का निचला शीरा चौड़ा होता है जिसमें कई प्रकार के प्राथमिक उत्पादक होते हैं जिसमें की सभी पेड़ पौधे शामिल होते हैं
निचले सिरे से जस्ट ऊपर उपर पिरामिड में जाने पर वहां पर शाकाहारी जंतु को रखा गया है इसके बाद और ऊपरी सिरे पर जाने पर सर्वाहारी आते हैं
इस सर्वाहारी में वे जीव जंतु आते हैं जो मांसाहारी और शाकाहारी दोनों होते हैं और अंत में आता है सबसे ऊपरी सिरा जिसमें सिर्फ मांसाहारी होता है
इसके हिसाब से इसमें चील सियार भेड़िया इत्यादि होंगे क्योंकि यहाँ सिर्फ मांसाहारी होते हैं और यह अपने भोजन के लिए सर्वाहारी और मांसाहारी पर निर्भर होते हैं
पारिस्थितिकी तंत्र में ऊर्जा का प्रवाह कैसे होता है?
पिरामिड में ऊर्जा का प्रवाह के आधार पर पिरामिड को सीधा या उल्टा लिखा जाता है। सीधी वाले पिरामिड में सूर्य प्रकाश की ऊर्जा का 10% नियम लागू होता है जिसेLINDMAN द्वारा प्रस्तुत किया गया था
इस नियम के अनुसार सूर्य की किरणों से 100000 जूल ऊर्जा प्राथमिक उत्पादक पर पत्तों को प्राप्त होता है इस पेड़ पत्तों को जब कोई सहकारी खाता है तब उसे 10% जूल ऊर्जा कम प्राप्त होती है
और इसके बाद उस शाकाहारी को कोई मसाहरी जंतु खाता है तब प्राप्त ऊर्जा में 10% और कम हो जाता है
खाद्य श्रृंखलाएं – Food series in hindi
में घास का मैदान, टिड्डा, सांप, चील जैसे जंतु शामिल है,
इस प्रकार देखा जाये तो सभी जंतु एक दूसरे पर निर्भर हैं
CONCLUSION – पारिस्थितिकी तंत्र क्या है
इस पोस्टपर हमने आपको बताने की कोसिस कीहै की पारिस्थितिकी तंत्र क्या हैं जिसमे हमने आपको पारिस्थितिकी की परिभाषा और परिस्थितिक तंत्र की विशेषता दोनों को बताया
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FAQ
A प्रकृति के जीवमंडल मे पाए जाने वाले सभी प्रकार के जैविक और अजैविक घटकों का सम्मिलित रूप से पारस्परिक क्रिया को पारिस्थितिक तंत्र कहा जाता है
A पारिस्थितिक तंत्र के जनक A.G. TANSLE है
A 2 प्रकार के होते है – प्राकृतिक और मानवीकृत
A जैविक और अजैविक घटक से मिलकर बनता है
A जैविक और अजैविक
A ऊर्जा का पिरामिड सीधा होता है